विफलताओं का ताज ,एक और साल मोदी राज ;निधि सत्यब्रत चतुर्वेदी

विफलताओं का ताज ,एक और साल मोदी राज।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने अपने लगातार दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा कर लिया है। यदि पलट कर इन 12 महीनों के अंतराल का आंकलन किया जाए तो पिछला एक साल प्रशासनिक, आर्थिक, नीति और सामाजिक मोर्चों पर मोदी सरकार की विफलता का रहा है। एक विभाजनकारी, दमनकारी शासन ने  137 करोड़ भारतीयों के विश्वास को ठगकर  हमें आर्थिक संकट, बेरोजगारी, हिंसा और महामारी के भंवर में धकेल दिया है।


मोदी सरकार ने  हमारे संविधान की नींव पर प्रहार करते हुए भारत के संघीय ढांचे को ही नष्ट कर दिया। प्रत्येक संस्थान का उपयोग राष्ट्र निर्माण के बजाय भाजपा के राजनीतिक उद्देश्य के लिए किया जा रहा है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NRC) के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन हुए। इन अधिनियमों में सरकार द्वारा रखे गए मापदंडों पर देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकता। इस तरह से मोदी सरकार करोड़ों भारतीय नागरिकों को अपनी नागरिकता खोने, वोट देने के अधिकार से वंचित होने और राज्यविहीन शरणार्थी बनने के लिए मजबूर करती है। परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अधीन दिल्ली पुलिस न केवल दंगों को रोकने में विफल रही, बल्कि वास्तव में सहायता करने और अपराधियों को खत्म करने का आरोप लगाया गया था। और जब पूर्वोत्तर दिल्ली जल रहा था तब नरेंद्र मोद राजधानी की लुटियन्स गलियों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मेजबानी कर रहे थे।


आर्थिक मोर्चे पर विफलता चौतरफा रही है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जनवरी 2020 का पूर्वानुमान था कि भारतीय अर्थव्यवस्था 5 प्रतिशत से कम की वृद्धि करेगी। वास्तव में इस वर्ष की विकास दर 11 वर्षों में सबसे कम है। 'डिमोनेटाइजेशन' के व्यापक प्रभाव ने व्यापार मैं गिरावट और बेरोजगारी  पैदा की। खपत में भारी गिरावट से लगातार गिरती मांग ने सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। फिर भी टीम मोदी अर्थव्यवस्था को विकास के रास्ते पर लाने के लिए एक भी समाधान नहीं पेश कर पाई है। कोविद -19 महामारी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है, अर्थव्यवस्था पर इसका असर लंबे समय तक रहने वाला है।
देश में बेरोजगारी दर 27 फीसद से ऊपर पहुंची, असंगठित क्षेत्रों का हुआ बुरा हाल, शायद इन कुछ परेशानियों को कम किया जा सकता था यदि मोदी सरकार ने विपक्ष की बात सुनी होती तो। कॉग्रेस नेता राहुल गांधी ने जनवरी 2020 में चेतावनी दी थी कि कोरोना वायरस को भारत में फैलने से रोकने के लिए तत्काल उपायों की आवश्यकता है। लेकिन भाजपा सरकार ने उनकी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया।


अगर पहले तालाबंदी की घोषणा की जाती तो शायद कोविद -19 को प्रभावशाली तरीके से रोकने में मदद मिलती। लेकिन मोदी-शाह मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार को गिराने और वहां की सत्ता पर कब्जा करने में व्यस्त थे। मध्य प्रदेश की सत्ता पाने की खातिर उन्होंने पूरे देश को खतरे में डाल दिया। आज मध्यप्रदेश कोविद महामारी की चपेट में आने वाले शीर्ष तीन राज्यों में से एक है।


जब सरकार ने बिना किसी तैयारी के, बिना किसी चेतावनी के और बिना किसी योजना के तुगलकी फरमान जारी कर तालाबंदी कर दी तो अर्थव्यवस्था का चरमराना जायज़ था। लाखों प्रवासी श्रमिकों को भुखमरी, संक्रमण और मृत्यु का सामना करना पड़ा और वह भी सरकार की गलत नीतियों की वजह से। सरकार और सरकारी तंत्र ने गरीबों से अपना मुंह मोड़ लिया और उन्हें बेबस अपने हाल पर छोड़ दिया।


 पीड़ित मज़दूरों के प्रति मोदी सरकार की घृणित उदासीनता ने उसके गरीब विरोधी रवैये को उजागर कर दिया है। विपक्ष द्वारा बार-बार मांग किए जाने के बावजूद मोदी सरकार ने इन भूखे, बेरोजगार गरीब श्रमिकों को कोई आर्थिक सहायता नहीं दी है। देर सवेर सरकार से जो मदद मिली वह भी एक बहुत बड़ा धोखा और सरकार की नाकामियों का प्रतीक है। भाजपा सरकार द्वारा बीस लाख करोड़ की प्रोत्साहन राशि, जो बहुत गाजे-बाजे के साथ घोषित की गई, महज़ एक दिखावा है। मोदी सरकार ने वित्तीय मदद के रूप में जीडीपी का दस प्रतिशत खर्च करने का दावा किया। लेकिन असल में ये जीडीपी का सिर्फ एक प्रतिशत ही है। सहायता का बड़ा हिस्सा बजट में पहले ही घोषित की गई योजनाओं का फेर-बदल है। और इनमें से कोई भी फायदा गरीब मज़दूरों तक पहुँचते पहुँचते शायद छह महीने से ज़्यादा लग जाएँ। तब तक वो कैसे ज़िंदा रहेंगे? 


बेहतर होगा कि सरकार अपनी पीठ थपथपा ने की बजाए जमीनी हकीकत को पहचाने और इन जटिल समस्याओं का समाधान ढूंढे।

निधि सत्यव्रत चतुर्वेदी