हिमलाये तूँ केदारं

तुम अंदर 
तुम बाहर
तुम श्वास हो 
उच्छवास हो


तुम जड़ में 
हर चेतन मे 
तुम तन में 
हर मन में 


तुम सृजन में,
हो संहार में 
तुम साकार में,
निर्विकार हो 


हर ताल में
हो लय में 
हो मय में ,
तुम पय हो ।


तुम शोक हो
आनंद हो
तुम आदि में,
अनंत हो 


तुम घट घट हो
मरघट में हो 
हर कंकर कंकर,
तुम शंकर हो 


तुम शंकर हो
तुम शंकर हो!!


"हिमालये तूँ केदारं"