6 अप्रैल : गांधी के नमक सत्याग्रह का ऐतिहासिक दिन
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6 अप्रैल वह ऐतिहासिक दिन है, जब गांधीजी विश्व का ध्यान आकृष्ट करने वाली साबरमती आश्रम से आरंभ अपनी दांडी यात्रा पूरी कर दांडी के समुद्र तट पहुंचे थे और नमक बनाने पर रोक के कानून की सिविल नाफरमानी कर दुनिया की सबसे बड़ी एवं शक्तिशाली साम्राज्य सत्ता को खुली चुनौती देते हुये राष्ट्रव्यापी सविनय अवज्ञा आन्दोलन का शंखनाद किया। सन् 1930 में 12 मार्च को आरंभ 425 किमी की वह दांडी यात्रा 24 दिनों में पूरी की गई। प्रतिदिन बापू 19 किमी चलते थे। साबरमती से चले थे बापू 90 लोगों के साथ और 6 अप्रैल को दांडी पहंचे तो 50 हजार लोग थे।
गरीब अमीर के घर घर की जरूरत नमक बनाने पर अंग्रेजों का कानूनी एकाधिपत्य था। भारी टैक्स के साथ लोगों तक नमक पहुंचता था। आज भी कितने कानून समाज में रोज टूटते हैं, ट्रैफिक कानून तोड़ने और चक्का जाम से दहेज न लेने देने तक के, पर वो हलचल नहीं होती। तब गांधी बाबा ने ललकार कर वह नमक कानून तोड़ा तो विशालतम ब्रिटिश साम्राज्य की सत्ता हिल उठी। दांडी पहुंचे गांधी ने बस इतना ही तो किया था कि केतली में समुद्र का पानी नमक बनाने के लिये भठ्ठी पर रखवा दिया था। केतली का पानी खौला, नमक नीचे जमने लगा और भाप उड़ने लगी। इसमें कुछ बड़ी बात तो नहीं हुई थी, सिवा इसके कि जिसके राज्य में सूरज ही नहीं डूबता था, उस विराट साम्राज्य सत्ता के कानून की प्रतिष्ठा को गांधी ने ललकार कर केतली से निकलती उस भाप के संग उड़ा दिया था।
बात दांडी तक ही रहती तो गनीमत रहती, पर गांधी क्या चले कि देश चलने लगा था। गांधी ने कानून तोड़ कर नमक क्या बनाया कि देश में गांव गांव, शहर शहर नमक बनाने की सिविल नाफरमानी सत्याग्रह होने लगा। 10 साल पहले के असहयोग से कई कदम आगे खड़े थे सीधी कार्रवाई वाले सत्याग्रह का नया सशक्त संस्करण सविनय अवज्ञा का लेकर।
लाहौर-कांग्रेस के साथ पूर्ण स्वाधीनता का संकल्प ले चुका देश राष्ट्रीय आन्दोलन की संघर्ष यात्रा में सविनय अवज्ञा के अहिंसक नागरिक सत्याग्रह के नये पड़ाव पर खड़ा था। एक ओर भगत सिंह सरीखे सेनानियों ने सरकार की नाक में दम किया हुआ था, तो दूसरी ओर नमक की संजीवनी से देश के आम आदमी को जगा कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध सक्रिय आन्दोलन की देशव्यापी राजनीतिक चेतना से जोड़कर राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में एक नये अध्याय का श्रीगणेश इस 6 अप्रैल की तारीख को किया।
नमक सत्याग्रह