#प्रकृति से मनमाना खिलवाड़, आधुनिकता की चकाचौंध भरी दौड़ और खुद को खुदा तथा भगवान समझ बैठने की भूल का गंभीर परिणाम हैं #कोरोना जैसा वैश्विक संकट ।
#शायद! आज तक किसी युग में ऐसा नहीं हुआ होगा, जो आज कलयुग में हमें भोगना पड़ रहा है । आज तक हमारा सामाजिक मिलन बंद नहीं हुआ । एक - दूसरे के सुख-दुख में भागीदारी बंद नहीं हुई । पूजा - प्रार्थना, अजान बंद नहीं हुई । आज मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च सूने पड़े हैं । नवरात्रि में देवी मंदिरो के पट तक नहीं खुल पाये । एक-दूसरे से गले मिलना तो दूर, बातचीत करना तक मुहाल हो गये । मांगलिक कार्यक्रमो पर विराम लग गया । किसी के अंतिम संस्कार मे शामिल होना भी मुश्किल हो गया । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमारे दशहरा और होली जैसे पर्व अप्रासंगिक हो गये । तब भी हमारे ज्ञान चक्षु खुल नहीं रहे और हम सुधरना नहीं चाहते । कोई सबक नहीं सीखना चाहते ।
#कोरोना जैसी महामारी से बचाव के लिए आवश्यक है कि हम सम्पर्क से बचें । एक दूरी बनाकर रखें । सफाई रखें और मुंह नाक बांध कर रहें अर्थात मास्क लगाकर रखें । इसीलिए पहले #जनता_कर्फ्यू और फिर इक्कीस दिन के #लाॅकडाउन का ऐलान किया गया - जिसका पालन करना अतिआवश्यक है । लेकिन हालात से मजाक करने की हमारी आदत हमें और संकटग्रस्त बना देती है, और वैसा ही चल रहा है । जिसके कारण हम भयावहता की डगर पर हैं ।
#बिना गंभीर चिंतन और तैयारी के ऐलान आपाधापी को बढ़ावा देते हैं । कुछ राजपुरुषो को शायद! ऐसे मे आनंद आता होगा । गंभीर हालात से जूझने की दिशा में राजा का विलम्ब खुद को सही साबित रखने के लिए लिये जनता पर ही ठीकड़ा फोड़ता है । जिससे जनता संकटग्रस्त हो जाती है । वैसे संकट के इन दिनो को हंसते - हंसते जीना हमारे अनमोल जीवन के लिए बहुत आवश्यक है और गंभीरता पूर्वक #लाॅकडाउन का पालन भी ।
#वैसे लाकडाउन का खूब मजाक उड़ा । कहीं सत्ता पाने की लालच में उसका खुला मजाक उड़ा, तो वहीं केंद्र और दिल्ली सरकार की नाक के नीचे भी । भूख और प्यास से विचलित लाखों लोग दिल्ली की सड़को पर आ गये । संसाधन के अभाव में सैकड़ो किलोमीटर के सफर का लक्ष्य, मकसद केवल एक ही कि अपने घर - गांव पहुंच जाये । सामाजिक दूरी का नजरिया तार - तार हो गया । उनका एक ही सोच कि भूखे मरने से बेहतर है कि बीमारी से मर जाना । लेकिन सभी लोग यह भूल बैठे कि ऐसे में दूसरो की जीवन भी मौत की दहलीज पर पहुंच सकता है और मानव समाज संकट ग्रस्त हो सकता है अर्थात स्वार्थ, खुद की चिंता औरो की नहीं । मजबूरी में लोग ऐसा करें भी क्यों न? जब राहत के सत्ता स्वर जमीन पर अवतरित होते न दिखें । रही सही कसर तबलीगी जमात ने पूरी कर डाली । निजामुद्दीन थाना और उसके आफिस के बीच महज एक दीवार का फासला, लेकिन रहबर सोते रहे और कोरोना के जिंदा बम देश में घूमने को स्वतंत्र हो गये । अभी कुछ नहीं बिगड़ा, हम सचेत हो जायें ।
#इस संकट के वक्त बहुत से इंसान, देवदूत के रूप मे भी नजर आये और मानवता के सच्चे पैरोकार दिखे - उन सबका आभार । कोरोना से आपको हमें कोई सरकार व नेता नहीं बचायेगा । हमें सामाजिक संकल्प ही बचायेगा । सावधानी बरतना अति आवश्यक है । आगे हालात और भी भयावह हो सकते हैं, लेकिन धैर्य बनाये रखे । यह काली रात बीतेगी, फिर सवेरा आयेगा ।
#यह उथल-पुथल उत्थाल लहर हमको न डिगाने पायेगी, पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी - आयेगी ।
मंज़र ए कोरोंना