आपने देखा होगा गाड़ी के 'साइड मिरर' पर लिखा रहता है - ''Objects in mirror are closer than they appear." यही स्थिति 'कोरोना' महामारी की है. मैं इस वक़्त देख रहा हूँ कि देश में 21 दिन के कम्प्लीट लॉकडाउन की घोषणा के बाद भी कई ऐसे लोग हैं जो इस विपदा की गंभीरता को समझने में ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं और सड़कों, बाजारों में निकले हुए हैं. ऐसे लोगों को मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि 25 फरवरी 2020 को इटली में मेडिसिन डिपार्टमेंट के 'डॉक्टर एंटोनियो' ने सोशल मीडिया पर एक संदेश दिया था और उस संदेश में उन्होंने कहा था कि - "यह महामारी लम्बी चलेगी, यह खतरनाक है, कृपया आप सभी अपने घरों में रहें." जब उन्होंने यह संदेश दिया था तब इटली में कोरोना के केवल 250 मरीज थे. दुर्भाग्यवश उनकी बात नहीं सुनी गई. जहाँ युद्धप्रेमी रोमवासियों का निवास था उस प्राचीन सभ्यता के देश इटली ने अपने लापरवाह नागरिकों की भूल की कीमत यह अदा की है कि 'कोरोना' की इस त्रासदी से तबाह हुआ इटली आज बिलख रहा है, वहाँ मानवता कराहने को अभिशप्त हो उठी है. एक और प्राचीन महान आर्य सभ्यता 'भारत' के ऊपर इस वक़्त संकट के बादल छाए हुए हैं. हमारे देश के हम सभी नागरिकों का व्यवहार ही यह तय करेगा कि 'भारत' का भविष्य क्या है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी सभी देशवासियों से हाथ जोड़कर निवेदन किया है और हम सबको आगाह भी किया है कि अगर इस देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान हमने अपने घरों की 'लक्ष्मण रेखा' को पार किया तो देश को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी. वैश्विक महामारी 'कोरोना' से संघर्ष के इस दौर में हमारी अपार जनसंख्या, जनसंख्या घनत्व और सामाजिकता के पारम्परिक स्वभाव को देखते हुए पूरी दुनिया की निगाहें इस वक़्त 'भारत' पर टिकी हुयीं हैं.
'कोरोना' महामारी से संघर्ष के इस कठिन वक़्त में 'महाभारत' की एक घटना मुझे याद आती है- वनवास और अज्ञातवास निभाने जब सब पाण्डव पाञ्चाली सहित चले तो 'विदुर जी' ने अवसर देखकर एक-एक पाण्डव से पूछा और अंत में 'धर्मराज युधिष्ठिर' से पूछा कि - "वत्स, यदि जंगल में भीषण आग लग जाए तो जंगल में कौन सुरक्षित बचेगा?" 'धर्मराज युधिष्ठिर' ने जवाब दिया कि - "तात, स्वछन्द और निर्भय घूमने वाले शेर-चीते, हाथी, तेज दौड़ने वालीं नीलगाय और घोड़े, सबसे तेज भागने वाले खरगोश और हिरण ये सारे जानवर जंगल की आग में जलकर नष्ट हो जाएँगें. लेकिन बिलों में रहने वाले 'मूषक' सुरक्षित रहेंगे. जंगल की आग (दावानल) शान्त होने के बाद वे फिर से बिलों से बाहर निकल आएंगे और अपना जीवन पहले की तरह जीना शुरू कर देंगें." 'विदुर जी' ने कहा कि - "वत्स युधिष्ठिर, तुम्हारे उत्तर से मैं निश्चिन्त हुआ. जाओ ! दीर्घायु हो." इतिहास साक्षी है कि इसी एक सूझबूझ और सावधानी के चलते वनवास के दौरान पाण्डवों का लाक्षागृह से उद्धार हो सका था. 'विदुर जी' की समझदारी के कारण लाक्षागृह में आग लगने से पहले ही पाण्डव एक गुप्त सुरंग से होकर बाहर निकलने में सफल रहे थे. आज भी युद्ध के समय में बनाए जाने वाले 'बंकर' इसी सावधानी के चलते सुरक्षा के लिए तैयार किए जाते हैं. 'कोरोना' वायरस भी एक भयानक जंगल की आग की तरह है, जो लगातार सारी सीमाएँ लाँघते हुए तेजी से फैल रहा है. जो लोग अपने घरों में रहेंगे, एकान्तवास में रहेंगे, पृथक्करण में रहेंगे, वे स्वयं सुरक्षित रहेंगे, अपनों को भी सुरक्षित रख सकेंगे और खुद को बचाकर दुनिया पर राज करेंगे. आप जानते हैं आग लगी हो तो उसे पानी डालकर वहीं पर केवल बुझाया ही नहीं जाता है, बल्कि उसे आगे बढ़ने से रोका भी जाता है. जिधर आग आगे बढ़ रही हो, उधर का हिस्सा हटाकर उसका रास्ता अवरूद्ध कर दिया जाता है. यही 'कोरोना' की आग की तरह फैलती इस महामारी में हम सबको करना है, भारत सरकार का आव्हान भी यही है.
मुझे मन से पूरा भरोसा है कि वैश्विक त्रासदी 'कोरोना' पर हम निश्चित रूप से जीत हासिल करेंगें. इस विजय को सुनिश्चित करने के लिए हमें बस करना केवल इतना है कि घरों के भीतर ही रहना है. आप इसे इस तरह सोचकर या समझकर देखिए कि हम बस में ड्राइवर के पीछे की सीट पर बैठे-बैठे यदि रास्ते के हर मोड़, अवरोध, पत्थर को देखते जाएँगें और अपनी प्रतिक्रिया देते जाएँगें कि ड्राइवर को बस ऐसे चलानी चाहिए, इस मोड़ पर ऐसे चलना चाहिए, इतनी स्पीड में चलना चाहिए, यहाँ ऐसा टर्न नहीं लेना चाहिए, यहाँ ओवरटेक करना चाहिए या नहीं करना चाहिए, ये करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए, तो ऐसा करके हम खुद तो चिंतित और परेशान होंगें ही साथ ही ड्राइवर भी अपनी ड्राइविंग पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाएगा. इसलिए हमारा काम है कि हम अपनी सीट पर इत्मिनान से बैठे रहें, संगीत सुनना है तो संगीत सुनते रहें, गीत गाना है तो गीत गा लें, सोने का मन है तो नींद ले लें, किताब पढ़ना चाहते हैं तो किताब पढ़ लें या खिड़की से बाहर प्रकृति के नजारों को देख लें. ड्राइवर को 'बस' (Bus) चलाने दें, उसे विचलित न करें. कोरोना से संघर्ष के इस सफर में ड्राइवर केन्द्र और राज्य सरकारें, डॉक्टर्स, नर्सेस, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिस इत्यादि हैं. यदि यह करने में हम कामयाब हो गए और जिस तरह महाभारत के समय पाण्डवों ने खुद को जलते लाक्षागृह से सूझबूझ और समझदारी से सुरक्षित कर लिया था, हमने 'कोरोना' वायरस से स्वयं को और अपने परिजनों को इस तरह सुरक्षित कर लिया तो हम 'कोरोना' से यह वैश्विक युद्ध जीत जाएँगें. और फिर वर्षों बाद जब कोई हमसे पूछेगा कि आपने 2020 में कोरोना वायरस को कैसे हराया था तब हम गर्व से कह सकेंगें कि- "घर पर रहकर, घर पर आराम करके. हम उसे मिले ही नहीं तो वो भूखा मर गया."
संयम ही सुरक्षा