प्रामाणिक पुरुष बनो
या प्रामाणिक स्त्री बनो।
झूठ को मत जगह दो;
ढोंग मत रचो। सच्चे बनो
और सच्चाई का दुख झेलो।
दुख झेलना अच्छा है।
दुख प्रशिक्षण है, अनुशासन है।
सच्चाई का दुख झेलो।
क्रोध, प्रेम और घृणा, सबका दुख झेलो।
एक ही बात स्मरण रहे—
कभी पाखंडी मत बनो।
अगर तुम प्रेम अनुभव नहीं करते तो कहो,
वैसा कह दो। प्रेम का ढोंग मत करो,
दिखावा मत करो कि तुम्हें प्रेम है।
अगर तुम क्रोध में हो तो कहो कि मैं क्रोध में हूं।
तब सचमुच क्रोध करो।
इससे बहुत दुख होगा,
उस दुख को भोगो।
उसी पीड़ा से एक नयी
चेतना का जन्म होगा।
तुम घृणा और प्रेम की सारी
मूढ़ता के प्रति जाग जाओगे।
तुम जिस आदमी को घृणा करते हो
उसी को प्रेम भी करते हो
और एक वर्तुल में घूमते रहते हो।
वह वर्तुल तब तुम्हें साफ—साफ दिखाई देने लगेगा।
और वह दृष्टि सिर्फ दुख से गुजरने से प्राप्त होती है।
दुख से मत भागो।
तुम्हें सच्चे दुख की जरूरत है।
वह आग की भांति है,
वह तुम्हें जला डालेगी।
और जो भी झूठ है वह जल जाएगा
और जो सच है वह बच जाएगा।
अस्तित्ववादी इसी को प्रामाणिकता कहते हैं।
प्रामाणिक बनो और तब तुम मन के बाहर हो जाओगे। अप्रामाणिक रहो और तुम जन्मों—जन्मों मन की कैद में पड़े रहोगे।