भू-लोक वैकुण्ठ
रंगनाथस्वामी मंदिर , श्रीरंगम
हम कैसे बात कर सकते हैं उन विषयों पर जिनके बारे में ना हमने पढ़ा हो ना ही देख पाए हो ? क्या कभी कोई आंक पाया है अंकोरवाट की दिव्यता या खजुराहो जा सौंदर्य अपने नेत्रों से ।
आज जिस मंदिर की हम बात करने जा रहे हैं वह भारत से सबसे सुंदर स्थापत्य कलाओं में से एक है। रंगनाथ स्वामी मंदिर कावेरी नदी के निकट एक द्वीप श्रीरंगम पर स्थित है ।
एक सौ छप्पन एकड़ में फैला हुआ यह मंदिर भारत के सबसे बृहद मंदिरों में से एक है । यह मंदिर द्रविण स्थापत्य कला का एक अद्वितीय नमूना है। यह मंदिर हिन्दू देवता भगवान विष्णु के रंगनाथ अवतार को समर्पित है।
मंदिर का निर्माण काल 10 वीं शताब्दी का माना गया है। उसके पश्चात कई वंश आएं और मंदिर को बचाने में और अपना योगदान दिया।
मुग़लों के आक्रमण से यह मंदिर भी अछूता ना रहा । इसे भी बहुदा स्तर पर क्षतिग्रस्त करने का प्रयास किया गया ।
"रंगनाथ अर्थात भगवान विष्णु तथा रंगनायकी अर्थात माता लक्ष्मी"
मंदिर में मुख्य देवता की मूर्ति का निर्माण स्टुको (कटुशर्करा विधि ) से किया गया है । मूर्ति तथा मंदिर को देख प्रतीत होता है देव पुरुष ही रहे होंगे जिनके हाथों से साक्षात भगवान विष्णु का घर बनाया।
मंदिर को अलवर सन्तों के 12 दिव्य प्रबन्ध से सुशोभित किया गया है। नालयिर दिव्य प्रबन्ध तमिल के 4,000 पद्यों को कहते हैं जिनकी रचना बारह अलवर सन्तों आठवीं शती के पहले ने की थी। तमिल में 'नालयिर' का अर्थ है - 'चार हजार'।
वर्तमान रूप में इन पद्यों का संकलन नाथमुनि द्वारा नौंवी और दसवीं शताब्दी में किया गया। ये पद्य आज भी खूब गाए जाते हैं।
श्रीरंगम मंदिर का परिसर 7 प्रकारों और 21 गोपुरमों द्वारा निर्मित है। मंदिर का मुख्य गोपुरम अथवा मुख्यद्वार 236 फीट ऊँचा है, इसे 'राजगोपुरम' नाम से भी जाना जाता है ।
मंदिर के भीतर एक लकड़ी की मूर्ति जिसे याना वहाना कहा जाता है, जिस पर भगवान विष्णु बैठे हुए मस्तोदोनटिओटाइदा नामक एक प्रागैतिहासिक हाथी की तरह परिलक्षित होते हैं जो 15 मिलियन वर्ष पूर्व विलुप्त हो गया था ।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में देवताओं की भगवान श्रीराम के द्वारा पूजा की जाती थी। किन्तु दशानन पर विजय के पश्चात यह मंदिर विभीषण को सौंप दिया गया।
लंका जाने के रास्ते में, भगवान विष्णु विभिषन के सामने उपस्थित हुए और इस स्थान पर रंगनाथथ के रूप में रहने की अपनी इच्छा को व्यक्त किया और तब से कहा जाता है कि भगवान् विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहां वास करते हैं ।
यह मंदिर भगवान विष्णु के 108 दिव्य देशम् मंदिरों में से एक है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां तमिल भक्ति आंदोलन के समय के सभी सन्तों के गीतों को प्रशंसा मिली है।
इस मंदिर में 953 स्तम्भों का हॉल एक नियोजित थियेटर संरचना का एक अच्छा उदाहरण है और इसके विपरीत, "सेश मंडप", मूर्तिकला में इसकी जटिलता के साथ, एक अदभुत द्रश्य का उदाहरण है । ग्रैनाइट से बने 1000 स्तंभित हॉल का निर्माण विजयनगर काल(1336-1565) में किया गया था । इन स्तंभों में कुछ मूर्तियाँ जिसमें जंगली घोड़े और बड़े पैमाने पर बाघों के घूमते हुए सिर जो कि प्राकृतिक लगते है को बनाया गया हैं।
श्रीरंगम में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण पर्व वैकुण्ठ एकादशी है। जिसमें देश विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं और रंगनाथस्वामी के दिव्यता के साक्षी होते हैं।
हिन्दू धर्म भव्यता से भरा हुआ था , है और आने वाले काल में भी रहेगा। आप चाहे मंदिर की बात करें , यहां के विश्वविद्यालयों की। यदि आप और हम इनके ऊपर बात नहीं करेंगे अन्य लोगों को कैसे पता चलेगा कि संसार की सुंदरता में भारत का भी उतना ही योगदान है जितना अन्य राष्ट्रों का ।
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