औरत की कमी अखरती जरूर है

औरत की कमी अखरती जरूर है !
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एक औरत की कमी तब अखरती है
जब वो चली जाती है !
वापस 
लौट कर नहीं आती है !!


छत पर लगे जाले व आँगन की धूल
हटाने में संकोच आता है !
"तुम्हारी ये सफाई" कहने का 
मौका नहीं मिल पाता !!


एक औरत की कमी तब अखरती है
जब कालरों की मैल छुटाने में
पसीना छूट जाता है !
चूडियां साथ में नहीं खनकती
उसका "मेहनतकश" होना याद आता है !!


एक औरत की कमी तब अखरती है
जब घर में देर से आने पर
रोटियां ठंडी हो जाती है ।
सब्जियों में याद आता है
निकालना उसमें कमीयों को !!


तुम्हारी पसंद का जायका नहीं रहता
और तुमसे यह कहते नही बनता
"मुझे ये पसंद नहीं " !
तब लगता, गलत मै था
वह बिल्कुल सही !!


एक औरत की कमी तब अखरती है
जब बच्चा रात को ज़ोर से रोता है
आप अनमने से उठ जाते हो !
और "कितनी लापरवाह हो तुम"
यह नहीं कह पाते हो !!


एक औरत की कमी तब अखरती है
जब आप रात में अकेले सोते हैं !
करवट बदलते रहते
और उसकी यादो मे खोते है !!


एक औरत की कमी तब अखरती है
जब त्यौहारों के मौसम में
नयी चीज़ों के लिए कोई नहीं लड़ता !
"और पैसे नहीं हैं "
तुमसे ये कहते नही बनता !!


एक औरत की कमी तब अखरती है
जब आप गम के बोझ तले दबे होते हैं !
अकेले मे अकेला होकर रोते हैं !!


और आपके 
आंसू पोंछने वाला कोई नहीं होता !
तब, महसूस होता है 
उसके साथ होना, सही होता !!


आप किसी से कुछ नहीं कह पाते है !
गलती न हो पर भी पछताते है !!


हाँ, अब मजबूर हो जाते है !
तब, लौट के बुध्दू घर को आते है !!


इसलिए नारी शक्ति मे गुरुर है !
औरत की कमी अखरती जरूर है!!