विज्ञापन का मायाजाल

बेशक यह सामने बना रहा है तो आपने इसका कॉलर पकड़ लिया बिल्कुल ठीक।
 कमजोर पर आपकी  दादागिरी चलेगी ।
 परंतु उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने आपकी औकात  क्या है जो पिछले 50 साल से इस देश में जहरीले कोका कोला पेप्सी कोला फ्रूट जूस जिसमें कीटनाशक ताकि उसमें कीड़े ना पड़े प्रिजर्वेटिव्स ताकि वह खराब ना हो बदबू ना मारे रंग सिंथेटिक मिठास सिंथेटिक और आप टीवी पर विज्ञापन देखकर आपकी 2 साल की औलादे से लेकर बड़ी-बड़ी पार्टियों में खाने के बाद उस जहर को भी ताक रहे हैं तब आपकी औकात नहीं हुई आपकी तो क्या सरकार की भी औकात नहीं हुई कि उन कंपनियों का मोटा कमीशन खा कर उनके खिलाफ बोले सरकार की औकात सरकार की औकात तो उनके इशारे पर कानून बनाने की है।
 सन 2006 में जब सभी शीतल पेय पदार्थों में कीटनाशक पकड़े गए तो उन्होंने कीटनाशक डालना बंद नहीं किया वरुण उन्होंने इसके लिए सरकार मैं बैठे  भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को और मंत्रियों को खरीद कर को कानून ही बनवा लिया की भारत में पदार्थों में कृत्रिम रासायनिक मिठास होने के कारण कीड़े ना पड़ जाए इसलिए इस मात्रा में कीटनाशक मानवी उपयोग के लिए उचित है जो आपको किडनी लीवर हार्ट अटैक के साथ यौन रोग देकर आप को नपुंसक बना रहा है चर्म रोग देकर आप को खजेला बना रहा है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज  ने और अनेकों गेट सरकारी संगठनों  ने इस बात को उठाया परंतु नक्कारखाने में मीडिया में चौबीसों घंटे चलते विज्ञापनों के सामने उनकी आवाज दब के रह गई और हमारी पूरी पीढ़ी की पीढ़ी  कमजोर बीमार होती चली जा रही है इसके  बारे में कोई आवाज उठा रहा है नहीं क्योंकि सारा मीडिया दृश्य और श्रव्य उनके हाथों बिका हुआ है।
 बेशक सड़क पर बैठे हुए विक्रेता को आप सब कुछ बोलिए कॉलर पकड़कर मारिए। उसके दुकान उठा कर फेंक दीजिए।  
क्योंकि वह बेचारा कमजोर है। गरीब है दो वक्त की रोटी के लिए आपकी आंखों को और आपकी चटोरी बेलगाम जीभ को अच्छा लगे,  इच्छा अनुसार उस पर रंग मिठास रसायन और बर्फ डाल रहा है।
 जबकि वह सब कुछ आपके सामने कर रहा है।
 आप को फलों का रस पीना है। बनाने से पहले साफ बोलिए कि भाई इसमें बर्फ शक्कर और कोई भी रंग मत डालना वह नहीं डालेगा। वसूलेगा रू 10 से 20, 30, 40/- मात्र उसमें भी आप उससे जगजीत करेंगे उसके कीमत को लेकर परंतु माल बड़ी दुकानों मैं चुपचाप उसकी बस 100 से ₹200  देकर चुपचाप स्वयं और अपने बच्चों को पिलाना अपनी शान समझते हैं
परंतु आपकी या सरकार की औकात है कि कंपनियों को बोल दे कि इसमें रासायनिक रंग,  जहरीले कीटनाशक मिठास और सुगंध ना डालें।
 सड़क पर बैठे विक्रेता से आप सब कुछ कह सकते हैं परंतु बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामने आप तिनके की औकात रखते हैं समझिए सोचिए जानिए और सबको बताइए।