------------------------- #शबरीमाला --------------------------
------------ #अनुशासित_परंपरा_या_आडम्बर ------------
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कोई आपसे पूछे कि ब्रह्मांड में कितनी तरह की चीज़े हैं तो आप क्या जवाब देंगे ? जवाब है सिर्फ दो - पहली चीज़ है ऊर्जा यानी एनर्जी (E), दूसरी द्रव्यमान, मैटर या मास (M) । इनके बीच के सिद्धांत को ऊर्जा द्रव्यमान का समीकरण कहते है जिसे E = MC*2 से प्रदर्शित करते है और इस समीकरण के अनुसार ऊर्जा न पैदा होती है न खत्म की जा सकती है। बस अपना रूप बदलती है।
#अब_जरा_इसे_पढिये -
नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। मतलब उसे नष्ट नही किया जा सकता ।
दोनो में समानता मिली ऊपर का नियम ऊर्जा द्रव्यमान का नियम है जो अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा दिया गया नीचे भगवत गीता में आत्मा के उसी रूप यानी आत्मा के एक ऊर्जा ही होने की पुष्टि की जा रही है , की आत्मा भी ऊर्जा का एक रूप है जिससे मानव शरीर कार्य करता है ।
भारत में बहुत सारे मंदिर हैं। मंदिर कभी भी केवल प्रार्थना के स्थान नहीं रहे, वे हमेशा से ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। जहां आप कई स्तरों पर ऊर्जा प्राप्त कर सकते है। चूंकि आप खुद कई तरह की ऊर्जाओं का एक जटिल संगम हैं इसलिए हर तरह के लोगों को ध्यान मे रखते हुए कई तरह के मंदिरों का एक जटिल समूह बनाया गया। एक व्यक्ति की कई तरह की जरूरतें होती हैं जिसे देखते हुए तरह-तरह के मंदिर बनाए जिनका आधार रहा अगम शास्त्र दरअसल आगम शास्त्र कुछ खास तरह के स्थानों के निर्माण का विज्ञान है। बुनियादी रूप में यह अपवित्र को पवित्र में बदलने का विज्ञान है। समय के साथ इसमें काफी-कुछ निरर्थक जोड़ दिया गया लेकिन इसकी विषय वस्तु यही है कि पत्थर को ईश्वर कैसे बनाया जाये।
यह एक अत्यंत गूढ़ विज्ञान है , सही ढंग से किये जाने पर यह एक ऐसी टेक्नालॉजी है जिसके जरिये आप पत्थर जैसी स्थूल वस्तु को एक सूक्ष्म ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं, जिसको हम ईश्वर कहते हैं दूसरे शब्दों में विज्ञान की व्याख्यानुसार ऊर्जा का केंद्र जिससे हमें ऊर्जा मिलती है ।
#अगम_शास्त्र, बहुत लम्बे समय से हिन्दू धर्म के पूजा-पाठ, मंदिर निर्माण, आध्यात्मिक और अनुष्ठानिक रीति-रिवाज के नियम और मानदंडों के लिए बने विचारों का एक सम्पूर्ण संकलन है। यह संस्कृत, तमिल और ग्रंथ शास्त्रों का एक संग्रह है जिसमें मुख्य रूप से मंदिर निर्माण के तरीके, मूर्ती निर्माण के तरीके, दार्शनिक सिद्धांतों और ध्यान मुद्राओं का सम्पूर्ण संगृह है। बाद के वर्षों में यह विभिन्न प्रकार के श्रोतों और विचारों के आत्मसात हुआ और सम्पूर्ण अस्तित्व में आया (कुछ कुरीतिया भी सम्मिलित हुई)। एक संग्रह के रूप में सम्पुर्ण अगम शस्त्र को दिनांकित नहीं किया जा सकता है इसके कुछ भाग वैदिक काल के पहले के प्रतीत होते हैं और कुछ भाग वैदिक काल के बाद के। मंदिर निर्माण और पूजा में अगम शास्त्र की भूमिका एक पूर्ण उपदेशक और मार्गदर्शक के रूप में, आगम शास्त्र अभिषेक और पवित्र स्थानों के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ज्यादातर हिन्दू पूजास्थल अगम शास्त्र के सिद्धांतों का पालन करतें है।
अगम शास्त्र के चार पद - जैसे की अगम संख्या में बहुत सारे हैं लेकिन उनमे से प्रत्येक के चार भाग होते हैं
#क्रिया_पद
#चर्या_पद
#योग_पद
#जनन_पद
क्रिया पद मंदिर निर्माण, मूर्तिकला के अधिक साकार नियमों की व्याख्या करता है जबकि जनन पद मंदिर में पूजा की विधि, दर्शन और आध्यामिकता के नियमों की गर्वित व्याख्या करता है ,अगम शस्त्र के अनुसार मंदिर और पूजास्थल कभी भी एसे ही स्वेच्छा से और स्थानीय धारणाओं के आधार पर मनमाने ढंग से नहीं बनाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए किसी भी हिन्दू तीर्थस्थान के लिए तीन अनिवार्य सारभूत या मौलिक आवश्यकताएं है
#स्थल - मंदिर की जगह को दर्शाता है
#तीर्थ - मंदिर के जलाशय या सरोवर को दर्शाता है
#मूर्ती - पूजित प्रतिमा को दर्शाती है
अगम शास्त्र में तीर्थस्थल/मंदिर के प्रत्येक छोटे-छोटे से पहलु, आकृति, दृष्टिकोण और भाव के लिए विस्तार पूर्वक नियमों और तरीकों का विवरण है जैसे की मंदिर का निर्माण किस सामग्री से किया जाना चाहिए, पवित्र प्रतिमा का उचित स्थान कहाँ होना चाहिए और पवित्र प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कैसे करनीं चाहिए आदि आदि।
आसान शब्दो मे ऊर्जा स्थानांतरण के लिए किन नियमो का पालन किया जाए कि हममे स्थित ऊर्जा उस ऊर्जा के केंद्र से ऊर्जा लेकर और अधिक ऊर्जावान बन सके ये हमे अगम शास्त्र का जनन पद बताता है , वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आप ऐसे समझिए कि यदि किसी ट्रांसफार्मर से हम ऊर्जा यानी विद्युत आपूर्ति करते है तो वायर यदि सही न लगाकर गलत लगा दिया जाए तो न सिर्फ उपभोक्ता को नुकसान होगा अपितु उस ट्रांसफार्मर को भी छती पहुँचेगी और यही होता है जब कोई अपात्र व्यक्ति मंदिर में प्रवेश करता है तो न सिर्फ उसे नुकसान होता है बल्कि उन ऊर्जा केंद्रों का भी ।।
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी की दूरी पर पंपा है और वहाँ से चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग 1km की ऊंचाई पर शबरीमला मंदिर स्थित है। मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है, जहां हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं ,और हिन्दू धर्म का एक प्रतीक चिन्ह है ये मंदिर इसलिए विधर्मियों की नजर भी हमेसा इसपर रही । मंदिर में अयप्पन के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं। मंदिर में रजस्वला स्त्री का प्रवेश वर्जित था इसके पीछे कारण था इस समय महिलाओं की औरा नेगेटिव एनर्जी होना , आप हर प्रवेश करने वाली महिला से ये तो पूछ नही सकते कि आप रजस्वला हो या नही इसलिए मंदिर में 10 से नीचे और 50 से ऊपर महिलाओं के प्रवेश की अनुमति थी वो भी उनके ही भले के लिए क्योंकि ऐसा न होने पर मंदिर सिर्फ एक दर्शन स्थल ही रह जॉयगा उसका प्रभाव कम हो जाएगा , लेकिन फेमिनिस्ट जमात को सिर्फ हिन्दू धार्मिक स्थलों पर ही असमानता दिखती है आशा करता हूं मस्जिद में महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए जल्द ही ये जमात आंदोलन करेगी ।
#विशेष -
ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए साल में सिर्फ नवंबर से जनवरी तक खुलता है। बाकी महीने इसे बंद रखा जाता है।भक्तजन पंपा त्रिवेणी में स्नान करते हैं और दीपक जलाकर नदी में प्रवाहित करते हैं। इसके बाद ही शबरीमलै यानी सबरीमाला मंदिर जाना होता है।पंपा त्रिवेणी पर गणपति जी की पूजा करते हैं। उसके बाद ही चढ़ाई शुरू करते हैं। पहला पड़ाव शबरी पीठम नाम की जगह है। कहा जाता है कि यहां पर रामायण काल में शबरी नामक भीलनी ने तपस्या की थी। श्री अय्यप्पा के अवतार के बाद ही शबरी को मुक्ति मिली थी।
इसके आगे शरणमकुट्टी नाम की जगह आती है। पहली बार आने वाले भक्त यहाँ पर शर (बाण) गाड़ते हैं।
इसके बाद मंदिर में जाने के लिए दो मार्ग हैं। एक सामान्य रास्ता और दूसरा अट्ठारह पवित्र सीढ़ियों से होकर। जो लोग मंदिर आने के पहले 41 दिनों तक कठिन व्रत करते हैं वो ही इन पवित्र सीढ़ियों से होकर मंदिर में जा सकते हैं । दरअसल पहले नियम था कि इस मंदिर में 41 दिन के व्रत के बाद ही लोग प्रवेश करते थे इससे उनको ऊर्जा , व्रत के कारण आत्मिक शारीरिक शुद्धि मिलती थी जिससे यहां से जाने पर वो जीवन मे अधिक ऊर्जा से आगे बढ़ते । लेकिन अब सीधे ऊर्जा के केन्द्र को ही दूषित कर देने का कुत्शित प्रयास हो रहा है ताकि हिन्दुओ का धर्मांतरण , उनके हनन में आसानी हो ।
#मंदिर_का_नियम_और_मानव_शरीर -
शबरीमाला मंदिर प्रवेश के लिए 41 दिन के व्रत के लिए जो निर्देश है उनसे क्या लाभ है इसका विश्लेषण भी कर देता हूँ -
1- इकतालीस दिन तक समस्त लौकिक बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है।
ब्रम्हचर्य के लाभ आज हर वैमानिक पुष्टि करती है कि इससे शरीर मे ऊर्जा बढ़ती है मेडीकली देखे तो स्पर्म काउंट , डेन्सिटी और यौन छमता को बढ़ाया जाता है ब्रम्हचर्य से ।
2- इन दिनों में उन्हें नीले या काले कपड़े ही पहनने पड़ते हैं।
प्रकाश के सबसे अच्छे अवशोषक है ये रंग , चर्म रोग या व्यधि कैलसिफिकेशन आदि रोगी जब 41 दिन तक इन कपड़ो में दैनिक कार्य सूर्य उपासना पूजा कर्म आदि करते है तो उसमें लाभ होता है यहाँ तक कि स्किन कैंसर जैसी समस्या के लिए भी एक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है
3- गले में तुलसी की माला रखनी होती है और पूरे दिन में केवल एक बार ही साधारण भोजन करना होता है।
तुलसी माला एक मदिबन्ध पर दवाब डालती है तो रक्तचाप नियंत्रण में रहता है साधारण और 1 समय के भोजन से लिवर और पेट से समस्या खत्म हो जाती है ।
4- शाम को पूजा करनी होती है और ज़मीन पर ही सोना पड़ता है।
मानसिक शांति के साथ , जमीन पर सोने से सर्वाइकल पेन और शरीर के मांसपेशियों को लाभ धरती की चुम्बकीय तरंगों से तन मन को रिलैक्स मिलता है ।