निश्चल प्रेम की मुँरत औरत

*प्रेम औरत को थकने नहीँ देता.....*                               प्रेम औरत मेँ असीम शक्ति भर देता है, शक्ति  ऐसी की असीमिता कि...औरत अपने आपको पहचान नहीँ पाती - माथे पर सिँदूर सजे घर भर मेँ गुनगुनाती रहती, उसे लगता जन्नत उसके कदमोँ मेँ है, उसे पंख लग जाते हैं, मन प्रेम की नदी बन जाता है जिसके किनारे हमेशा बांध तोड़ने के लिए उतावले रहते हैं - प्रेम की ताकत उसे संभाले नहीँ संभलती,                                                         अपनी अंदर दौडती इस ताकत से उसे लगता वह क्या न कर दे.....                    कितनी बेशर्म है ये औरत, वाकई बेशर्म...मार लो, बेइज्जत कर लो, दुत्कार लो - कुछ देर रोती तड़पती, दुखी होती फिर, फिर हँसी पता नहीँ कहां से उड़कर उसके होठोँ पर आकर बैठ जाती है, उसके जबड़ो मेँ फिट हो जाती है......इरना बहता.....झाँss.....झाss......हँसी का झरना, ज़रा सी बात पर.... औरत तब सब भूल जाती है - लानतेँ-मलामतेँ, शिकवे-शिकायतेँ, ज़ख्म-मरहम, सब भूलकर, पूरी तरह पूर-सुकूँ होकर झरने के नीचे बैठी रहती है - सोचता हूँ....इतनी ज्यादतियोँ के बावजूद औरत कैसे रह पाती है संयमी, कहां से लाती है इतनी सारी मुस्कुराहटें, कैसे बहला लेती है व्यथित मन, कहां से ढूँढ लाती है इतना विशाल हुदय, समर्पण का भाव, हर्फे शिकायत के बजाय सब कुछ निसार कर देने का जज़्बा....                                      
                                                                                  "कुँवर बेचैन" के शब्दोँ मेँ.....👇
 ""मुहब्बत ने कहा मुझसे सताए जा, सताए जा,    
तुझे मैँ प्यार ही दूँगा कि औरत की तरह हूँ मैँ ""
                                                                       *मेरा अंदाज़ा है कि ईश्वर ने पहले दर्द बनाया होगा फिर उसे हरा देने के लिए औरत...*                            
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