दरअसल, यह मनोरोगियों का देश है। पूंजी व सत्ता के लिए मानवता को तिलांजलि दे चुके दरिंदों का अड्डा है। गधे तैरना सीख गए हैं। भेड़ों को लेकर चल देते हैं और खुद तैर कर नदी के उस पार मौज उड़ाते हैं और भेड़ें बिचारी बेमौत मारी जाती हैं।
धर्म निजी आस्था का विषय तो हो सकता है, मगर इस तरह जुलूसों, झांकियों, पंडालों में तो शक्ति प्रदर्शन होता है। जहां शक्ति प्रदर्शन हो वहां धर्म नहीं हो सकता। जहां शक्ति प्रदर्शन हो वहां धंधा चल सकता है, व्यापार चल सकता है मगर धर्म नहीं चल सकता है !!!
डॉ सौरभ मिश्रा