विशेषज्ञों द्वारा किये गए आंकलन के अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 में राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों द्वारा लगभग 50 000 करोड़ खर्च करने का अनुमान लगाया गया है जो 2014 के चुनाव की अपेक्षा 40 % अधिक है तथा विश्व में सर्वाधिक है । इसमें वह खर्च नहीं जोड़ा गया है जो उम्मीदवारों द्वारा मतदाताओं को प्रलोभन के रूप में बांटा गया है । दूसरी तरफ आज अखबार में खबर छपी है कि महाराष्ट्र में 47 साल में सबसे भीषण सूखा है । वहाँ 13000 गाँव संकट में हैं । देश के 91 मुख्य जलाशयों में मात्र 22 % पानी बचा है तथा 6 राज्यों में पेयजल संकट है । सोचिये कि क्या चुनाव में फूँके गए 50000 करोड़ रुपयों में से 50 % इस पेयजल संकट से निपटने के लिए खर्च नहीं किये जा सकते थे ? चुनाव दिनों दिन महंगे होते जा रहे हैं । सोचकर बताइये की डिजटल युग में चुनावी आमसभा, रैली , पोस्टर , बैनर आदि की क्या आवश्यकता है । लगभग 90 % परिवारों के पास मोबाइल फोन हैं । क्या चुनाव प्रचार के अन्य तरीकों पर अब रोक लगाने का समय नहीं आ गया है ? चुनावी चंदा काले धन का सबसे बड़ा केन्द्र है ।चंदा उगाही को पारदर्शी बनाने से सरकार क्यों डर रही है ? कभी चना चबैना खाने वाले नेताओं की पार्टी ने अल्प समय में खरबों रुपये खर्च कर विश्व में सबसे बड़ा और शानदार कार्यालय खड़ा कर लिया है । सब काले धन का खेल है । काला धन विदेशी बैंकों से वापिस लाने का वादा करने वाली पार्टी , अब सरकार बनने पर उन लोगों के नाम तक बताने को तैयार नहीं हैं जिनका धन विदेशी बैंकों में होने की जानकारी सरकार के पास है । मतदाता को मूर्ख बनाकर पेयजल संकट , भुखमरी , बेरोजगारी आदि मुद्दों से भटकाया जा रहा है । वह मोदी के इस जुमले से ही खुश है कि मोदी ने पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर मारा । सभी आतंकी अड्डे समाप्त करने का झूठ बोला जा रहा है और रोज आतंकी घुस रहे हैं । ये सब गंभीर मामले हैं , इन पर सबको विचार करना चाहिए । जयहिन्द ।
डॉ सौरभ मिश्रा
लचर अर्थ व्यवस्था