कमल नाथ

#मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को अभी बमुश्किल एक साल भी नहीं हुआ और आपसी खींच-तान तथा सत्ता में वर्चस्व की जंग शिखर पर पहुंच गई है । हालांकि, सरकार के गठन के साथ ही कुछ शक्ति केंद्र अपनी भागीदारी तथा मंत्रिमंडल गठन को लेकर लगातार विरोध के स्वर उठाते रहे । लेकिन अब आरोप - प्रत्यारोप अमर्यादित हो गया है, जो सरकार के स्वास्थ्य के लिए कतई हित कर नहीं है ।
#शुरू से ही कांग्रेस तथा सरकार को समर्थन दे रहे सपा और बसपा के विधायक मंत्रिमंडल में शामिल न किये जाने को लेकर खुलकर असंतोष के स्वर बुलंद करते रहे हैं । इधर कई विधायक मंत्रियो के लापरवाह आचरण और जनहित में अपनी  अनसुनी किये जाने के गंभीर आरोप मुखर होकर लगा चुके हैं । गोविंद सिंह जैसे वरिष्ठ मंत्री भी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर चुके हैं ।
#पीसीसी अध्यक्ष के पद को लेकर तो मारामारी मची ही हुई है । गुटीय वर्चस्व का संघर्ष चरम पर है । विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ लोकहित में आंदोलन की बात करने लगे हैं । अब तो हद हो गई है, आरोप - प्रत्यारोप के आंतरिक सत्ता संघर्ष ने मर्यादा और अनुशासन की धज्जियां बिखेर दी हैं । दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेता पर कमलनाथ के उमंग सिंगार जैसे मंत्री सार्वजनिक रूप से गंभीर आरोप लगाने से बाज नहीं आये । विपक्ष नहीं, सत्ता पक्ष के लोग ही दारू और बालू के अवैध खेल में धन खाने के आरोप एक दूसरे पर बड़ी बेशर्मी से लगा रहे हैं । ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी रेत के अवैध उत्खनन के व्यापार पर सवाल लगा कर सरकार को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं । 
#ऐसे हालातो से सरकार की जनता के बीच छवि धूमिल हो रही है । जनता कहने लगी है कि कमलनाथ जी अपनी सत्ता की वैशाखियों को संभाल नहीं पा रहे हैं और शायद! प्रशासन तंत्र पर अंकुश बना पाने में असफल साबित हो रहे हैं । कई बेलगाम मंत्री सरकार की छवि को लोकप्रिय बनाने की जगह कलंकित करने में लगे हैं । यही स्थिति रही तो कमलनाथ सरकार का भविष्य उज्ज्वल नहीं दिख रहा । बेहतर है कि जल्द हालात सुधारे जायें और सत्ता मद में चूर अलोकप्रिय हो रहे लोगों को तत्काल सुधारा जाये । खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मारने से कोई फायदा होने वाला नहीं है और न ही ऐसी प्रवृत्ति सरकार के लिए हितकर होगी ।
डॉ सौरभ मिश्रा