कलाम -एक सुगंध जो बसी हुयी है दिलों में

कलाम -एक सुगंध जो बसी हुयी है दिलों में ।


कलाम साहब का धर्म उनका काम था ।ताउम्र वो अपना धर्म निभाते रहे । अपने अंतिम भाषण तक । शायद मृत्यु को सामने देख भी उन्होंने कहा होगा कि चलता हूँ ज़रा दो शब्द अपने वतन से और कह दूँ । वे चले गये ।लेकिन उनके शब्द हज़ारों वर्षों तक आने वाली पीढ़ियों के लिये मंत्रो की तरह गूंजेंगे ।
विवेकानंद ने कहा था एक विचार अपना लो और उसपर ज़िंदगी भर काम करो । 
कलाम ने भी एक विचार पर काम किया । वो विचार भारत था ।
मेरी दृष्टि में उनका सबसे बड़ा योगदान था कि उन्होंने समकालीन भारत को बहुत प्रेरणा दी । 
वो लगातार बताते रहे कि हम दुनिया में अग्रणी हो सकते है ...हथियारों के लिए नहीं बल्कि दुनिया को सुखमय बनाने में । 


1993 में एक दिन हैदराबाद के निजाम इंस्टीट्यूट  ऑफ मेडीकल साइंस के ऑरथोपैडिक विभाग के मुखिया बी एन प्रसाद 
ए पी जे कलाम से मिलने उनके DRDO दफ़्तर पहुँचे ।उनसे आग्रह किया कि एक दिन हमारे हास्पिटल  के केंद्र पर आएँ । 
अगले दिन कलाम साहब पहुँचे । देखा सैंकड़ों पोलियो ग्रस्त बच्चे भारी भरकम केलीपर्स (यंत्र) लगाकर किसी तरह घिसट कर चल रहे थे । 
प्रसाद जी  ने कलाम से कहा की किसी तरह इनके पैरों में लगने वाले तीन किलो वज़नी केलीपर्स का वज़न कम करिये ।कलाम ने अपनी टीम के साथ इस पर काम किया ।
तीन हफ़्ते बाद कलाम वापस लौटे तो तीन किलो की जगह 300 ग्राम का केलीपर उनके हाथ में था ।बच्चों को केलीपर लगाया गया ।दस गुना वज़न हल्का हो चुका था । बच्चे सरलता से चल पा रहे थे । 
बच्चों के साथ साथ उनके माँ बाप के भी आँखो में आँसू आ गये ।
जीवन वही है जो औरों के लिये सुगंध बन सके ।कलाम ऐसी ही सुगंध थे जो अब भी मौजूद है ।
आज उनका जन्मदिन है ।
ज़िंदगी वही है जो करोड़ों को ज़िला सके 
मृत्यु है वही जो करोड़ों को रुला सके ।
पुण्यस्मरण ।