ग्वालियर में सत्तारूढ़ दल के एक विधायक द्वारा अतिक्रमण के विरोध में अतिक्रमण स्थल पर ही धरने पर बैठना दुर्भाग्यपूर्ण है । विधायक को मनाने के लिए 2 मंत्री तथा 1 विधायक भी गए किन्तु विधायक माने नहीं । अतिक्रमण कर्ता गरीब परिवारों के प्रति हमदर्दी दिखाना और उनके लिए संघर्ष करना विधायक की संवेनशीलता है , जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए किन्तु प्रशासन की यह मजबूरी विधायक और उनके समर्थकों को समझनी चाहिए कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर ही अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की जा रही है । उच्च न्यायालय का आदेश शासन , जिला प्रशासन तथा अतिक्रणकारियों के लिए बंधनकारी है , जो मानना ही पड़ेगा । जो नहीं मानेगा , उसे न्यायालय की अवमानना के अपराध में जेल जाना पड़ सकता है । पिछले दिनों दिल्ली में एक धार्मिक स्थल को न्यायालय ने अतिक्रमण मानते हुए तोड़ने का आदेश दिया था , जिसका पालन प्रशासन ने हज़ारों लोगों द्वारा उग्र एवं हिंसक प्रदर्शन करने के बाद भी अतिक्रमण हटा कर किया था । किसी भी सत्तारूढ़ दल के विधायक या सांसद द्वारा अपनी ही सरकार के विरुद्ध धरने पर बैठना , न केवल उस दल की स्थिति कमज़ोर करता है बल्कि हंसी का पात्र भी बनाता है । सत्तारूढ़ दल के लोगों को यह सोचना चाहिए कि अब वे विपक्ष में नहीं है । सत्ता मिलने से जिम्मेदारी बढ़ती है , जो सत्ताधारी दल के लोगों को निभानी चाहिए , चाहे कोई भी दल सत्ता में हो । जयहिंद ।
ग्वालियर में सत्तारूढ़ दल के एक विधायक द्वारा अतिक्रमण के विरोध में अतिक्रमण स्थल पर ही धरने पर बैठना दुर्भाग्यपूर्ण है ।