एक कल्पना कीजिए कि यदि रावण आज जिन्दा होता और कहता कि मैं रावण हूँ। आज आप सब लोग मुझे हर गाँव, हर शहर में जलायेंगे और सब कहेंगे कि अच्छाई पर बुराई की जीत हुई।
लेकिन ज़रा सब सोचें ओर चिंतन करें कि क्या वाकई में मैं इतना बुरा था जितना कि आज इंसान हो गया है? अगर मेरी बहिंन का अपमान लक्षमण द्वारा न किया जाता तो मॆ सीता को क्यों उठा कर लाता?
फ़िर सीता को लाने के बाद मेने सीता के साथ कोई भी जबरदस्ती नहीं की न ही उनका अपमान किया मैंने तो सिर्फ उनके उत्तर की प्रतिक्षा की ।
तीनो लोक में मेरे समान कोई भी बलशाली नही था फ़िर भी मैं अपनी मर्यादा में ही रहा।
सीता की पवित्रता पर कोई आँच न आने दी। मैं चाहता तो सीता को अपने महल मॆ जबरदस्ती रख सकता था । लेकिन मैं जानता था कि इससे सीता के चरित्र पर व्यर्थ ही संदेह पैदा होगा।
इसलिये मेने सीता को महल से दूर अशोक वाटिका में परिचारिकाओं के साथ रखा ।
राम को सब मर्यादापुरुषोत्तम कहते हैं। लेकिन मेरे पुत्र- भाई , सम्बन्धी सभी मृत्यु को प्राप्त हो गये फिर भी मैंने कभी इस बात को ले कर उसका बदला सीता से नहीं लिया। मैं अंत तक अपनी मर्यादा में रहा।
मेरे सोने की लंका में कोई गरीब नही था। सभी को न्याय मिलता था।
मॆ श्रापवश भले ही राक्षस कुल का था मगर मेरी प्रजा सम्पन्न और आराम से रहती थी ।
जब हनुमान ने मेरे पुत्र का वध कर दिया तब भी मैंने राज धर्म का पालन करते हुऐ सिर्फ पूँछ मॆ अग्नि लगाने की सज़ा दी। हालाँकि कि इससे मेरा पूरा नगर जल गया।
जब अंगद मेरे पास आया तो मैंने मित्र का पुत्र होने का उसे पूरा सम्मान दिया, स्नेह दिया जब कि मैं चाह्ता तो उसे बन्दी बना सकता था ।
मेरे सारे भाई कुम्भकरण सहित मुझसे स्नेह करते थे। बस सिर्फ विभीषण ही मेरी भावना को नहीं समझता था। मैं कहता था कि मेरे राज्य में सिर्फ भगवान शंकर की उपासना होगी या मेरी ।
लेकिन वो विष्णु को भगवान मानता था। फ़िर भी मैंने उसके साथ कोई अत्याचार नही किया ।
मॆ जानता था कि विभीषण राम के प्रति सहानभूति रखता है। फ़िर भी मैंने उसे राम की शरण में जाने दिया।
क्या भाई को अपनी मातृभूमि को संकट में देखने के बावजूद शत्रु की शरण में जाना क्या धर्म संगत था ?
मैं चाह्ता तो विभीषण को बन्दी बना सकता था । उसे देश द्रोह के आरोप मॆ मृत्यु दंड दे सकता था। मगर मैंने ऐसा नहीं किया। उसे राम के पास जाने दिया क्योंकि मैं जानता था कि मैं अब अपने पुत्र- सम्बन्धियों सहित मारा जाऊँगा। मेरे वंश में कोई तो जीवित रहे।
मेरा वंश समाप्त न हो। इसके लिये मैंने विभीषण को चुना। वह शान्त मॄदु भाषी ओर धार्मिक प्रवृत्ति का था। मेरे नाभि में अमृत है, ये बात सिर्फ विभीषण ही जानता था। उसको मैंने राम के पास जाने दिया । ये मेरी रणनीति थी ।
कई सदियों से मुझे जलाया जा रहा है जब कि मेने इस बात का पश्चाताप भी राम से प्रकट कर दिया था। मुझे माफ नही किया।
किंतु आज कल मुझे जलाने वाले स्वयं क्या कर रहे हैं?
इस देश मॆ स्त्री के साथ कितना अमानवीय व्यवहार हो रहा है?
एक दंम्पति और उनके दो मासूम बच्चो को जिन्दा जला दिया, यूपी में औरतों को सरे बाजार में नंगा कर पुलिस द्वारा पीटा गया..
क्या ये आप लोगों को दिखाई नही दे रहा है?
छोटी- छोटी बच्चियों के साथ बलात्कार, उन्हें मार देना, और फ़िर मुझे जलाना क्या न्यायोचित है?
या तो अपनी इन प्रवृत्तियों पर रोक लगाओ या फ़िर मुझे जलाना बंद करो...
मैं अपराधी ज़रूर हूँ, लेकिन दुराचारी नही हूँ,।
लेकिन आज तो लोग दुराचारी भी हैं और अपराधी भी ।
मैं तो सिर्फ राम का गुनहगार था। मगर ये तो सारे समाज के गुनहगार हैं।
मुझे जलाओ।
मगर मेरे साथ उन गुनहगारों को भी जलाओ ।
नहीं तो किसी को कोई हक नहीं है सिर्फ मुझे जलाने का...!
विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनायें
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डॉसौरभ मिश्रा