धर्म कर्म

🕉️🚩 *धर्मरथ*🚩🕉️


*रावण जब रामजी से युद्ध करने रणभूमि में आया तो रावण को रथ पर और रामजी को बिना रथ के देख कर विभीषण जी अधीर हो गये। प्रेम अधिक होने से विभीषण के मन में संदेह उत्पन्न हो गया कि भगवान बिना रथ के रावण को कैसे जीत सकेंगे* 
*विभीषण जी कहते हैं कि* 
*नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना ।*
                   *केहि बिधि जितब बीर बलवाना।। 1।।*
*हे नाथ! आपके न रथ है न तनकी रक्षा करनेवाला कवच है और न ही जूते है। वह बलवान वीर रावण किस प्रकार जीता जायेगा? ।।1।।*


*सुनहु सखा कह कृपानिधाना।।* 
                  *जेहि जय होइ सो स्यंदन आना।। 2।।*


*भगवान् कहते हैं कि हे सखे! सुनो, जिससे जय होती है वह रथ दूसरा ही है।। 2।।*


*सौरज धीरज तेहि रथ चाका।* *सत्य सील व्रत ध्वजा पताका।। 3।।*
*बल विवेक दम परहित घोरे।* 
 *छमा कृपा समता रजु जोरे।। 4।।*
*ईस भजनु सारथी सुजाना।*
*बिरती चर्म संतोष कृपाणा।। 5।।*
*दान परशु बुधि शक्ति प्रचंडा*।
   *बर बिग्यान कठिन कोदंडा।। 6।।*
*अमल अचल मन त्रोन समाना*। 
   *सम जम नियम सिलीमुख नाना।। 7।।*
*कवच अभेद्य विप्र गुरु पूजा।* 
 *एहि सम विजय उपाय न दूजा।। 8।।*
*सखा धर्ममय अस रथ जाके।* 
 *जीतन कह न कतहु रिपु तांके।। 9।।*
*दो°--- महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो रघुबीर*। 
           *जाकें अस रथ होइ दृढ सुनहु सखा मतिधीर।।* 


*भगवान कहते हैं* 
       *शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका है। बल, विवेक, दम (इंद्रियों को वश में करना)और परोपकार - ये चार उसके घोडे है, जो क्षमा, दया और समतारुपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं।। 3।।* 
        *ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचंड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है।। 4।।*
       *निर्मल और अचल मन तरकस के समान है, शम(मन का वश में होना) यम (अहिंसादि) और नियम (शौचादि) ---ये बहुत से बाण है ब्राम्हणो एवं गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है ।। 5।।*
*हे सखे! ऐसा धर्ममय रथ जिसके हो उसके लिये जीतने को कहीं शत्रु ही नहीं है।। 6।।*
*दो°--हे धीरबुद्धिवाले सखा! सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म मृत्यु) रूपी महान दुर्जय शत्रु को भी जीत सकता है (रावण की तो बात ही क्या है)*